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सिंदूर, सोहर और संस्कार: खान सर की शादी और पूर्वांचल की गंगा-जमुनी तहज़ीब

एक विवाह, एक विमर्श

जब खान सर जैसे शख़्सियत की शादी होती है, तो वह सिर्फ़ एक पारिवारिक आयोजन नहीं रह जाती, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक विमर्श का विषय बन जाती है।

उनकी पत्नी की तस्वीरें सामने आईं — मांग में सिंदूर, पारंपरिक घूंघट, लाल जोड़ा और सौम्यता से झुकी हुई दृष्टि — और देशभर के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जैसे बहस की चिंगारी फूट पड़ी।

कुछ लोग इसे “इस्लामी शरीयत का उल्लंघन” कहकर कोसने लगे, तो कुछ ने इसे “भारतीय संस्कृति की आत्मा” बताकर सराहा।

पर इस पूरे प्रकरण के पीछे जो बात सबसे अधिक मौन रही, वह थी: पूर्वांचल की गंगा-जमुनी तहज़ीब, जिसमें खान सर ने न केवल जन्म लिया, बल्कि उसे जिया और निभाया।

इस्लाम और सिंदूर: धार्मिक मत और सामाजिक व्यवहार

इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर, बिंदिया, मंगलसूत्र, घूंघट आदि प्रतीकों का कोई स्थान नहीं है।

इस्लामी शरीयत में विवाह एक निकाह है — एक धार्मिक अनुबंध — जिसमें श्रृंगार या सांस्कृतिक प्रतीकों का कोई बंधन नहीं।

2023 में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के मौलाना शाहबुद्दीन रज़वी ने एक फतवा भी जारी किया था, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि “सिंदूर या बिंदिया इस्लाम में नाजायज़ है।”

लेकिन क्या धर्म की व्याख्या केवल ग्रंथों से होती है?

या फिर ज़मीन की महक, घरों की परंपरा, और समाज के सांचे भी उसे गढ़ते हैं?

पूर्वांचल की सांझी तहज़ीब: जहाँ सरहदें धुंधली हैं

उत्तर प्रदेश और बिहार का सीमावर्ती क्षेत्र — बलिया, सिवान, छपरा, देवरिया, गाज़ीपुर — एक ऐसा भूभाग है जहाँ हिंदू और मुस्लिमों की सांस्कृतिक रेखाएं अक्सर एक-दूसरे में घुल-मिल जाती हैं।

यहां की मुस्लिम महिलाएं —

  • शादी के अवसर पर सिंदूर लगाती हैं,
  • मांग भरती हैं,
  • पैर में आलता और बिछुआ पहनती हैं,
  • त्योहारों पर साड़ी और घूंघट अपनाती हैं,
  • और श्रीकृष्ण के नाम का सोहर गाकर अपने अल्लाह से संतान की दुआ मांगती हैं:
    “अल्लाह मियां मोरे भाई को दीजो नंदलाल!”

यह किसी धार्मिक विद्रोह का संकेत नहीं है — यह समझौते की नहीं, समरसता की संस्कृति है।

घूंघट और आधुनिकता: विरासत का बोझ या गरिमा का प्रतीक?

“इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी घूंघट?”

यह प्रश्न अक्सर आधुनिक विमर्शों में तैरता है। पर घूंघट का संबंध पिछड़ेपन से नहीं, सम्मान और मर्यादा से भी हो सकता है।

आज भी उत्तर https://janmatexpress.com/category/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4/ में IAS, PCS, डॉक्टर, प्रोफेसर महिलाएं विवाह में पारंपरिक लिबास और घूंघट धारण करती हैं — यह उनकी संस्कृति का स्वीकार है, न कि उनकी सोच की सीमाएँ।

पूर्वांचल में मुस्लिम महिलाओं द्वारा सिंदूर धारण करने की परंपरा

  1. बिहार और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम महिलाओं द्वारा सिंदूर धारण
    पूर्वांचल के क्षेत्रों, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश में, मुस्लिम महिलाएं पारंपरिक रूप से सिंदूर धारण करती हैं। यह प्रथा धार्मिक से अधिक सांस्कृतिक है, जो स्थानीय परंपराओं और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। एक ट्विटर उपयोगकर्ता, अतीया ज़ैदी, ने भी इस परंपरा का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि बिहार की कई मुस्लिम महिलाएं सिंदूर लगाती हैं, जो क्षेत्रीय संस्कृति का हिस्सा है ।
  2. लाल दरवाज़ा मस्जिद, जौनपुर
    जौनपुर की लाल दरवाज़ा मस्जिद, जिसे 1447 ईस्वी में रानी राज्ये बीबी ने बनवाया था, इस क्षेत्र की सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक है। यह मस्जिद मुस्लिम और हिंदू स्थापत्य कला का संगम है, जो गंगा-जमुनी तहज़ीब की जीवंत मिसाल है ।

गंगा-जमुनी तहज़ीब के अन्य उदाहरण

  1. लखनऊ की सोहर परंपरा
    लखनऊ के आसपास के गांवों में एक विशेष परंपरा है, जहाँ शादी से एक दिन पहले धोबिन, जो अक्सर मुस्लिम होती है, घर-घर जाकर ‘सुहाग’ मांगती है और दुल्हन की मांग में सिंदूर लगाती है। यह परंपरा दर्शाती है कि कैसे मुस्लिम महिलाएं हिंदू विवाह संस्कारों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं ।
  2. बक्सर के लाथौर समुदाय
    बिहार के बक्सर जिले में लाथौर समुदाय, जो मुस्लिम है, अपनी शादियों में सिंदूर दान की रस्म निभाता है और फिर मौलवी की उपस्थिति में कलमा पढ़कर निकाह पूरा करता है। यह प्रथा दर्शाती है कि कैसे धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं एक-दूसरे में समाहित हो जाती हैं ।
  3. कानपुर में मुस्लिम महिलाओं द्वारा श्रीकृष्ण की आरती
    कानपुर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मुस्लिम महिलाओं ने भगवान श्रीकृष्ण की आरती कर गंगा-जमुनी तहज़ीब की अनूठी मिसाल पेश की। यह घटना दर्शाती है कि कैसे धार्मिक सीमाएं सांस्कृतिक समरसता में विलीन हो जाती हैं ।

खान सर: शख़्स नहीं, प्रतीक हैं

खान सर कोई आम शिक्षक नहीं हैं।

वे एक संवाद के प्रतीक हैं — जो राष्ट्रवाद के साथ जुड़ते हैं, फिर भी सांप्रदायिकता से दूर रहते हैं।

उनकी भाषा में हिंदुस्तान बसता है, और उनके मन में भारत की मिट्टी की सुगंध।

जब उनकी पत्नी पारंपरिक हिंदू श्रृंगार में सामने आईं, तो यह कोई व्यक्तिगत चुना हुआ निर्णय मात्र नहीं था — यह उस भूमि की स्वीकृति थी जहाँ खान सर और उनकी पत्नी ने होश संभाला, शिक्षा पाई, और समाज से जुड़ाव पाया।

सांस्कृतिक चमत्कार: एक दंपति, दो परंपराएं, एक आत्मा

खान सर की शादी हमें यह याद दिलाती है कि भारत में सांस्कृतिक पहचान धर्म से बड़ी हो सकती है।

  • सिंदूर धर्म नहीं, सुहाग का प्रतीक बन जाता है।
  • घूंघट मर्यादा बन जाता है, न कि मजबूरी।
  • और कृष्ण का नाम, अल्लाह की ज़बान से निकला आशीर्वाद बन जाता है।

यह वह भारत है जिसे रहीम और रसखान ने जिया, जहाँ नज़ीर अकबराबादी ने होली पर कविताएं लिखीं, जहाँ कबीरा ने दोनों को गले लगाया।

खान सर का विवाह — एक सांस्कृतिक आईना

हमें यह समझने की आवश्यकता है कि भारत की आत्मा महज़ “धर्म” से नहीं बनती।

वह बनती है परंपरा, सह-अस्तित्व, साझा त्योहारों, और घुलती-मिलती रस्मों से।

खान सर की पत्नी का सिंदूर कोई धार्मिक विद्रोह नहीं, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीवंत चित्र है।

उनका घूंघट कोई रूढ़िवादी जंजीर नहीं, बल्कि शालीनता और गरिमा की अभिव्यक्ति है।

उनका विवाह एक व्यक्तिगत अध्याय नहीं, हमारी साझी विरासत की पुनः पुष्टि है।

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